कानपुर : नमामि गंगे कार्यक्रम में गंगा किनारे बसे गाँव का होगा विकास - CM

अशोक गोयल ,क्राइम सस्पेंस न्यूज़ ,ब्यूरो रिपोर्ट कानपुर




कानपुर नगर । CSA के कैलाश सभागार में " *नमामि गंगे योजनांतर्गत गौ आधारित प्राकृतिक खेती"* पर एक दिवसीय कार्य शाला का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मा0 मुख्यमंत्री उ0प0 श्री योगी आदित्य नाथ ने अपने संबोधन में कहा कि किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से ,रसायन का उपयोग खत्म करने , कृषि लागत को *जीरो* करने के उद्देश्य से गंगा नदी के किनारे स्थित ग्राम पंचायतों के किसानों व वैज्ञानिकों के बीच यह एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। प्रथम चरण में गंगा नदी के किनारे स्थित 1038 ग्राम पंचायतों में इसे लागू किया जाएगा ।कार्य योजना बन चुकी है । गंगा नदी के दोनों तरफ 5-5 किलोमीटर तक की खेती में "प्राकृतिक खेती" करने से गंगा नदी को रासायनिक प्रदूषणों से बचाया जा सकेगा। अभी खेतो में प्रयुक्त होने वाला रासायनिक उर्वरक ,कीटनाशक आदि वर्षा के होने पर इन तटीय खेतो से जल के माध्यम से गंगा में मिलता है।



      उन्होंने कहा कि मा0 प्रधान मंत्री जी की पहल पर नमामि गंगे परियोजना अत्यंत बृहद कार्यक्रम है। इसी क्रम में प्राकृतिक खेती से न्यूनतम या जीरो लागत पर कृषि पैदावार को दोगुना किया जा सकता हैं ।ऐसा करने में रसायन का प्रयोग शून्य स्तर तक पहुच जाएगा। मा0 मुख्यमंत्री  ने कहा कि व्यक्ति के बीमार होने पर वह इलाज कराता है। धरती माँ के बीमार होने की स्थित में उसके इलाज की आवश्यकता है ,ऐसा ना करने पर पूरी मानवता के बीमार पड़ने का खतरा पैदा हो गया है। रासायनिक उपयोगों से आज भूमि की उर्वरा शक्ति बंजर होने के कगार पर पहुँच गई है। उन्होंने कहा कि 27 जनवरी से 31 जनवरी तक अभियान चलाकर *गंगा यात्रा* के दौरान गंगा नदी के किनारे स्थित गांव में किसानों को  प्राकृतिक खेती , *जीवामृत* , *घनजीवामृत*  के तैयार करने की विधि व प्रयोग विधि बताई जाय। उन्होंने कहा कि निराश्रति गोशाला से यदि कोई किसान एक गाय लेता है,तो उसे सरकार द्वारा रु0 900 प्रति माह दिए जाएंगे। एक एकड़ से 30 एकड़ तक भूमि में प्राकृतिक खेती करने के लिए एक गाय न्यूनतम रूप से  किसान के पास होनी चाहिए ।
       मा0 मुख्यमंत्री ने कहा कि 03 वर्ष पूर्व कानपुर में गंगा के प्रदूषण की स्थित भयावह थी। मात्र एक नाले से 14 करोड़ लीटर सीवर का पानी गंगा में गिरता था ।आज पूर्णतः बंद हैं ,उन्होंने पत्रकार बंधुयों से अपील करते हुए कहा कि अत्यधिक वर्षा जल उसी नाले से  वहीं गिरेगा ,जहाँ पहले गिरता था।  तथ्यों का ना समझ कर रिपोर्टिंग करने से समाज को खामियाजा भुगतना पड़ता है। वर्षा जल का उत्प्रवाह क्षणिक या कुछ समय के लिए हो सकता है। नियमित रूप से गिरने वाले कचड़े को नमामि गंगे योजना में रोका गया है । प्राकृतिक खेती के उत्पादों के प्रमाणीकरण का कार्य मंडल स्तर पर मंडी विभाग द्वारा किया जाएगा। प्राकृतिक खेती को अपनाकर उत्तर प्रदेश पूरे देश व दुनिया नई राह दिखा सकता है। ऐसा होने से लोगो को केमिकल मुक्त खाद्यान मिलेगा। उन्होंने मा0 राज्यपाल गुजरात को कुम्भ 2019 की काफी टेबल बुक प्रदान की।
     गुजरात प्रान्त के मा0 राज्यपाल आचार्य देव व्रत ने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहाकि वह हरियाणा प्रान्त में गुरुकुल के माध्यम से 200 एकड़ भूमि पर "प्राकृतिक खेती "कर रहे हैं।उन्होंने इसके लिए 300 गाय को पाला है।मात्र रु0 250 प्रति एकड़ की लागत से 32 कुंतल प्रति एकड़ धान की उपज प्राप्त की गई। जबकि रासायनिक लागत रु0 12000 प्रति एकड़ से अधिकतम 25 कुंतल प्रति एकड़ धान का उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कहा कि जब रासायनिक खाद का प्रयोग शुरू हुआ, टैब प्रति एकड़ 10-20किलो यूरिया व DAP का प्रयोग हो रहा था। आज यह मात्रा दो गुनी से अधिक हो चुकी है,जबकि उत्पादन गिरा है। इसका तात्पर्य है कि जमीन की कार्बन क्षमता खत्म हो रही है।रासायनों के उपयोगों से जमीन,जल ,वायु,  नदी व मानव बीमार हो  चुका है । रासायनिक खेती का विकल्प मात्र प्राकृतिक खेती ही है।
      श्री देव व्रत ने आगे बताया कि एक देसी गाय के एक दिन के गोबर व मूत्र से जीवामृत खाद बना कर रसायन का विकल्प है। उन्होंने बताया कि शुद्ध देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ मित्र  जीवाणु होते है।दूध न देने वाली अन्ना गाय के एक ग्राम गोबर में 500 करोड़ मित्र जीवाणु होते है। यह किसी जर्सी गाय में संभव नहीं है ।एक प्लास्टिक के टब में 180 लीटर पानी में गाय के एक दिन का गोबर व मूत्र ,लगभग 02 किलो किसी भी दाल का बेसन ,किसी बड़े वृक्ष के नीचे की 02 किलो मिट्टी को टब में डाल कर क्लॉक वाइज डंडे से टब के अंदर घुमाने से पेस्ट तैयार होगा उसमे खरबों की संख्या में मित्र जीवाणु पैदा हो जायेगें। इस प्रकार इसका प्रयोग करने से बिना केमिकल के खाद्यान्न पैदा किया जा सकता है। मात्र एक गाय 30 एकड़ कृषि योग्य खेती के लिए पर्याप्त है। श्री देव व्रत ने इस पर सरल भाषा में एक किताब भी लिखी है ,जिसका वितरण किसानों में किया गया।
        उन्होंने बताया कि बीजामृत ,जीवामृत वघन जीवामृत के प्रयोग से देशी केचुए जो कि 15-20 फ़ीट जमीन के नीचे जा चुके है ,वापस खेतो में आ जाएंगे ।उन्होंने बताया कि गुरुकुल की 80 एकड़ पूर्ण बंजर भूमि को उन्होंने एक ही फसल में जीवंत बनाया है। आज आंध्र प्रदेश के 05 लाख, हिमांचल प्रदेश के 50000 ,गुजरात के 02 लाख किसान "गौ आधारित प्राकृतिक खेती "अपना चुके हैं। उ0प0 में मा0 मुख्यमंत्री जी की पहल पर इस कार्यशालामें वह उपस्थित हुए हैं।
      भारत सरकार के कृषि व किसान कल्याण मंत्री मा0 नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्राकृतिक खेती को जीरो बजट खेती इसी लिए कहा जाता है,क्योंकि इसकी लागत नगण्य है।उन्होंने बताया कि हरियाण /पंजाब का किसान स्वयं रासायनिक खाद के प्रयोग से उत्पादित अनाज का उपयोग नहीं करना चाहता। अभी समय है हम सभी प्राकतिक खेती को अपना कर देश का भविष्य सुधार सकते है।
    इस कार्यशाला को प्रदेश सरकार के मा0कृषि मंत्री श्री सूर्यप्रताप शाही,मत्स्य/दुग्ध विकास मंत्री श्री चौ0 लक्ष्मी नारायण ,राज्यमंत्री उद्यान,कृषि विपरण (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीरामचौहान ,राज्य मंत्री कृषि शिक्षा श्री लखन सिंह राजपूत उपकुलपति CSA डॉ सुशील सोलोमन ,प्रमुख सचिव कृषि श्री अमित मोहन प्रसाद ,मंडलायुक्त डॉ सुधीर एम बोबडे सहित भारी संख्या में कृषक उपस्थित थे।